Akhet Film Review: आज जब भाग दौड़ भरी जिंदगी में हर चीज पीछे छूटती जा रही है, और हर चीज काफी तेज होती जा रही है. ऐसे समय में एक ठहरी हुई कहानी का आना काबिलेतारीफ है.
Akhet Film Review: आज जब भाग दौड़ भरी जिंदगी में हर चीज पीछे छूटती जा रही है, और हर चीज काफी तेज होती जा रही है. ऐसे समय में एक ठहरी हुई कहानी का आना काबिलेतारीफ है. ऐसी कहानी जिसे देखकर इंसान होने और जिंदगी को चलाए रखने की जुगत दोनों का महत्व समझ आता है. रवि बुले ने ‘आखेट’ फिल्म के जरिये यही कोशिश की है कि आज के सिनेमा से गायब होते आम आदमी और उसकी जिंदगी को परदे पर ला सकें. इस तरह फिल्म बहुत ही सुकून देने वाली है और सोचने को मजबूर करती है.
‘आखेट (Akhet Film Review)’ में नेपाल सिंह हैं जिन्हें अपने बाप-दादाओं की राह पर चलते हुए बाघ मारना है. लेकिन इस दौर में बाघ मारना कोई आसान काम नहीं. लेकिन नेपाल सिंह ठान लेते हैं और बेतला के जंगलों में पहुंच जाते हैं. बाघ मारने के इरादे हैं और साथ में है दो नाली बंदूक. वहीं मुर्शिद उन्हें मिलता है, और उसके साथ रिक्शे पर बैठकर शिकार करने जाना. यह सीन बहुत ही मजेदार है. रिक्शा, बंदूक और नेपाल सिंह. इस तरह मुर्शिद की जिंदगी की झलक भी मिलती है. लेकिन केंद्र में रहता है, बाघ और उसका शिकार. आखिर में क्या होता है, यह देखना दिलचस्प है.
इस तरह वोडाफोन और एयरटेल पर मौजूद ‘आखेट (Akhet Film Review)’ को एक बार देखना बनता है क्योंकि इसमें आम आदमी की जिंदगी से जुड़ी कई चीजें हैं जो आज के दौर में कहीं खोती जा रही हैं.
डायरेक्टरः रवि बुले
कलाकारः आशुतोष पाठक, रजनीकांत सिंह और तनिमा भट्टाचार्य