कुर्रतुल ऐन हैदर (Qurratulain Hyder) की महत्त्वपूर्ण संस्मरणात्मक, आत्मकथात्मक औपन्यासिक कृति ‘कारे जहाँ दराज़ हैं’ का हिन्दी अनुवाद चार खण्डों में प्रकाशित हुआ है.
कुर्रतुल ऐन हैदर (Qurratulain Hyder) की महत्त्वपूर्ण संस्मरणात्मक, आत्मकथात्मक औपन्यासिक कृति ‘कारे जहाँ दराज़ हैं’ का हिन्दी अनुवाद चार खण्डों में प्रकाशित हुआ है. इसे वाणी प्रकाशन ने प्रकाशित किया है और इसका अनुवाद इरफ़ान अहमद ने किया है. अनेक सम्मानों से सम्मानित कुर्रतुल ऐन हैदर, उर्दू की मशहूर लेखक और एक लोकप्रिय क़िस्सागो, न केवल उर्दू साहित्य बल्कि सम्पूर्ण भारतीय साहित्य धारा में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं.
कुर्रतुल ऐन हैदर की महत्त्वपूर्ण संस्मरणात्मक, आत्मकथात्मक औपन्यासिक कृति 'कारे जहाँ दराज़ हैं' का हिन्दी अनुवाद चार खण्डों में प्रकाशित करने में वाणी प्रकाशन ग्रुप हर्ष का अनुभव कर रहा है। https://t.co/dui6xGXBEW @ReadWithVani pic.twitter.com/ryk6XuEf80
— Urdu Bazaar (@UrduBazaar) November 27, 2020
आज़ादी से पूर्व मुस्लिम स्त्री कथाकार अपने अस्तित्व को लेकर किसी तरह का ख़तरा नहीं महसूस करती थीं और कुर्रतुल ऐन हैदर (Qurratulain Hyder) मुख्य साहित्य धारा में एक ऐसा नाम हैं जिनके समृद्ध लेखन ने उर्दू साहित्य की आधुनिक धारा को एक दिशा दी है. उर्दू ही क्यों, हिन्दी साहित्य में भी ऐसा कौन है जो उनके नाम से परिचित नहीं. ‘कारे जहाँ दराज़ है’ कुर्रतुल ऐन हैदर के सामाजिक और मनोवैज्ञानिक अनुभवों की कथाएं हैं जो एक इकाई से प्रारम्भ होकर सार्वभौमिकता का विराट रूप धारण कर लेती हैं. वे एक सामान्य बात को भाषा की संजीदगी के सिरहाने रख उसमें ऐसा तेवर रच लेती हैं जो उन्हें मंटो, कृष्णा सोबती आदि लेखकों की सूची में सबसे आगे ले आता है. भारतीय साहित्य की मुख्य धारा में उस समय कुर्रतुल ऐन हैदर ही ऐसी लेखक थीं जिन्होंने विभाजन की त्रासदी को अपने लेखन में अलग ही आयाम दिए.
सांस्कृतिक बोध की मान्यताओं को अपने ऐतिहासिक पक्ष के समकक्ष रख कुर्रतुल ऐन हैदर (Qurratulain Hyder) ने न केवल अपने समय को एक शब्द-संयोजन प्रदान किया है बल्कि इसे एक विरासत के रूप में अपने पाठकों के लिए संजोया भी है. इस आत्मकथात्मक कृति की सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि यह पाठक से अपने उसूलों के स्तर पर संवाद करती है. एक लेखक के तौर पर कुर्रतुल ऐन हैदर ने इस कृति में जिन स्मृति-कथाओं को सिलसिलेवार कलमबद्ध किया है वे उनके पाठकों को उस समय की सामाजिक, मनोवैज्ञानिक तथा राजनीतिक आदि सम्भावनाओं से रू-ब-रु करायेंगी. यह कृति सम्भवतः स्वयं में एक विलक्षण भाव-बोध की कृति है.
संस्मरणात्मक शैली में विभिन्न शीर्षकों के अन्तर्गत इस औपन्यासिक कृति में कुर्रतुल ऐन हैदर (Qurratulain Hyder) ने एक ऐसी संस्मरण कथा कहने का प्रयास किया है जो न केवल भाषा का सौन्दर्य पक्ष मज़बूत करती है बल्कि वाचिक परम्परा का निर्वाह भी करती दिखाई देती है. जैसे- खण्ड-3, अध्याय-13, ‘लारवन्द’ से यह पंक्तियाँ- “लन्दन सो रहा है, लन्दन जाग रहा है. खिड़कियों के पर्दे गिरा दिए गए हैं. बाहर ठंडी हवा चल रही है. कल सर्दी होगी. नीचे सड़क पर शाम का अख़बार बेचने वाले, आख्रिरी बचे-खुचे पर्चे समेट रहे हैं जिनकी सुर्खियां अँधेरे-अँधेरे में मद्धम होती जा रही हैं.’