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प्रेमचंद की परम्परा के वास्तविक उत्तराधिकारी हैं फणीश्वरनाथ रेणु, ‘लमही’ का रेणु विशेषांक

Phanishwar Nath Renu Special Issue of Lamahi Hindi Magazine

अमर कथाकार फणीश्वरनाथ रेणु (Phanishwar Nath Renu) के जन्मशती वर्ष में उनकी रचनाओं का पुनर्पाठ और मूल्यांकन करने का कार्य ‘लमही’ के वर्तमान (अक्तूबर-दिसंबर 2020) अंक में बखूबी किया गया है. 

अमर कथाकार फणीश्वरनाथ रेणु (Phanishwar Nath Renu) के जन्मशती वर्ष में उनकी रचनाओं का पुनर्पाठ और मूल्यांकन करने का कार्य ‘लमही’ के वर्तमान (अक्तूबर-दिसंबर 2020) अंक में बखूबी किया गया है. सम्पादकीय में यशस्वी संपादक विजय राय लिखते हैं कि रेणु सचमुच प्रेमचंद की परम्परा के वास्तविक उत्तराधिकारी हैं. इनकी किस्सागोई में प्रेम के जमीनी शेड्स और लोक संगीत की अभिभूत कर देने वाली जुगलबंदी है, जो पाठकों के अंतर्मन पर भी अपनी अमिट छाप छोड़ देती है. 

इस अंक में निर्मल वर्मा, सुरेन्द्र चौधरी, नित्यानंद तिवारी के प्रसिद्ध आलेख हैं और नलिन विलोचन शर्मा का वह कालजयी लेख भी है. इसके अलावा अंक में ‘पंचलाइट’ पर रविभूषण,  ‘मैला आंचल’ पर सूरज पालीवाल, ‘परती: परिकथा’ पर रमेश अनुपम, कहानियों पर शंभु गुप्त, रोहिणी अग्रवाल, अरुण होता के लेख के साथ-साथ अवधेश प्रधान, मृत्युंजय सिंह, शिवमूर्ति और भारत यायावर के आलेख विशेष रूप से ध्यातव्य हैं.

‘लमही’ ने हमेशा की तरह युवा आलोचकों को इस विशेषांक में पर्याप्त स्थान दिया है. नीरज खरे और राजेन्द्र राजन का फणीश्वरनाथ रेणु (Phanishwar Nath Renu) के ‘तीसरी कसम उर्फ़ मारे गये गुलफ़ाम’ पर आलेख पठनीय है. रेणु के चारों लघु उपन्यास ‘जुलूस’, ‘कितने चौराहे’, ‘दीर्घतपा’ और ‘पल्टू बाबू रोड’ पर क्रमशः सुनील कुमार द्विवेदी, डॉ. सुलोचना दास, डॉ. हृषिकेश कुमार सिंह एवं धनंजय कुमार साव ने डूबकर लिखा है. 

फणीश्वरनाथ रेणु (Phanishwar Nath Renu) की कहानियों ‘रस प्रिया’, ‘लाल पान की बेगम’, ‘एक आदिम रात्रि की महक’, ‘पहलवान की ढोलक’, ‘पंचलाइट’ और ‘संवदिया’ पर क्रमशः अरविन्द कुमार, डॉ. अल्पना सिंह, डॉ. गौरी त्रिपाठी, पंकज शर्मा, अजीत प्रियदर्शी तथा डॉ. एकता मण्डल ने नई दृष्टि से आलेख लिखे हैं. इसी प्रकार ‘श्रुत अश्रुत पूर्व’, ‘वन तुलसी की गंध’ और ‘ऋण जल-धन जल’ पर क्रमशः नीलाभ कुमार, भुवाल सिंह और अम्बरीश त्रिपाठी ने बेहतरीन समीक्षा की है. कुल मिलाकर रेणु पर डिजिटल फॉर्म में आया ‘लमही’ का यह विशेषांक हिन्दी के शोधार्थियों के लिए काफी उपयोगी है.

‘लमही’ फणीश्वरनाथ रेणु पर केंद्रित अक्तूबर-दिसम्बर 2020 अंक

प्रधान संपादक: विजय राय

मूल्य: 100/- रुपये

(समीक्षक: गजल जैगम)

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