लोकप्रिय हिन्दी उपन्यासकार सुरेन्द्र मोहन पाठक (Surendra Mohan Pathak) की आत्मकथा का तीसरा खंड ‘निंदक नियरे राखिए (Nindak Niyare Rakhiye)’ मंगलवार से पाठकों के लिए बाजार में उपलब्ध हो गया.
भारत के सबसे लोकप्रिय हिन्दी उपन्यासकार सुरेन्द्र मोहन पाठक (Surendra Mohan Pathak) की आत्मकथा का तीसरा खंड ‘निंदक नियरे राखिए (Nindak Niyare Rakhiye)’ मंगलवार से पाठकों के लिए बाजार में उपलब्ध हो गया. रहस्य-रोमांच से भरे अपने उपन्यासों के जरिये लाखों-लाख पाठकों को अपना मुरीद बना चुके पाठक की आत्मकथा के दो खंड पहले ही छप चुके हैं और व्यापक रूप से प्रशंसित रहे हैं. राजकमल प्रकाशन (Rajkamal Prakashan) से प्रकाशित ‘निंदक नियरे राखिए’ में पाठक ने उन दिनों की अपनी कहानी बयान की है, जब एक लोकप्रिय उपन्यासकार के रूप में उनकी प्रसिद्धि लगातार बढ़ती जा रही थी. साथ ही दुनियादारी के नए-नए चेहरों से वे परिचित हो रहे थे. इसमें एक तरफ पाठकों-प्रशंसकों की दीवानगी के हैरान कर देने वाले किस्से हैं, तो दूसरी तरफ प्रकाशकों से पाठक के बनते-बिगड़ते रिश्तों की बेबाक यादें.
यह किताब हमारे समाज में एक लेखक की बेमिसाल लोकप्रियता की सत्यकथा है. यह बतलाती है कि एक लेखक कैसे अपने पाठकों के दिलों का बादशाह बन जाता है और उसके लिए पाठक का क्या और कितना महत्त्व है. सुरेन्द्र मोहन पाठक अपनी आत्मकथा के तीसरे खंड के बारे में कहते हैं, ‘निंदक नियरे राखिए (Nindak Niyare Rakhiye) एक मामूली शख्स की मामूली जिंदगी को गैरमामूली बनाने वाले वाकयात का मजमुआं है. खुद के भुगते भले बुरे लमहों का निचोड़ है यह.’
राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने कहा, ‘सुरेंद्र मोहन पाठक जी ने अपनी आत्मकथा की तीसरी कड़ी ‘निंदक नियरे राखिए (Nindak Niyare Rakhiye)’ में पुस्तक-लेखन, प्रकाशन और साहित्य की राजनीति पर खुलकर बात की है. असहमति हो सकती है, पर इससे बहस को जमीन मिलती है. हिंदी में पुस्तकों का दो धड़ों में बंट जाना मुझे हमेशा खटकता रहा है. इस पर बात होनी चाहिए. पाठक जी ने जो प्रश्न उठाए हैं, उनपर जरूर बात होनी चाहिए. यह हिंदी समाज के लिए अच्छा होगा.’
सुरेन्द्र मोहन पाठक (Surendra Mohan Pathak) की आत्मकथा का पहला भाग ‘न बैरी न कोई बेगाना’ नाम से प्रकाशित हुआ था, जिसमें उन्होंने अपने बचपन से लेकर कॉलेज के दिनों के जीवन के बारे में लिखा है और दूसरे भाग ‘हम नहीं चंगे, बुरा न कोय’ में उससे आगे का जीवन संघर्ष के बारे में लिखा था.
लेखक: सुरेन्द्र मोहन पाठक
पुस्तक: निंदक नियरे राखिए
सेगमेंट: आत्मकथा
प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन
बाईंडिंग: पेपरबैक
मूल्य: 299/-