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‘कई चांद थे सरे-आसमां’ के लेखक शम्सुर्रहमान फारूकी का निधन

Shamsur Rahman Faruqi

उर्दू के जाने-माने साहित्यकार शम्सुर्रहमान फारूकी (Shamsur Rahman Faruqi) का निधन हो गया है.

उर्दू के जाने-माने साहित्यकार शम्सुर्रहमान फारूकी (Shamsur Rahman Faruqi) का निधन हो गया है. शम्सुर्रहमान फारूकी को उनकी किताब ‘कई चांद थे सरे-आसमां (Kai Chand The Sare Aasman)’के लिए भी खास तौर पर जाना जाता है और उन्हें ‘दास्तानगोई’ की कला को फिर से जिदा करने के लिए भी पहचाना जाता है. शम्सुर्रहमान फारूकी (Shamsur Rahman Faruqi) का निधन आज प्रयागराज में हुआ. एक महीने पहले ही वह कोरोना वायरस से संक्रमण से ठीक हुए थे. 85 वर्षीय शम्सुर्रहमान फारूकी को कोरोना से ठीक होने के बाद दिल्ली स्थित अस्पताल से 23 नवंबर को छुट्टी मिली थी.

मीडिया रिपोर्टों में लेखक महमूद फारूकी ने बताया कि वह प्रयागराज स्थित अपने घर जाने की जिद कर रहे थे. शुक्रवार को सुबह ही शम्सुर्रहमान फारूकी वहां पहुंचे थे और आधे घंटे के अंदर ही उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया.  महमूद फारूकी ने बताया कि ‘स्टेरॉयड के कारण उन्हें फंगल संक्रमण माइकोसिस हो गया था जिससे उनकी हालत और खराब हो गई थी.’ शम्सुर्रहमान फारूकी (Shamsur Rahman Faruqi) का जन्म उत्तर प्रदेश में 30 सितंबर 1935 को हुआ था. उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था.

शम्सुर्रहमान फारूकी (Shamsur Rahman Faruqi) ने अपने साहित्यिक सफर में ‘कई चांद थे सरे-आसमां (Kai Chand The Sare Aasman)’, ‘गालिब अफसाने की हिमायत में’ और ‘द सन दैट रोज फ्रॉम द अर्थ’ जैसी किताबें लिखीं. उन्हें 1996 में ‘शेर-ए शोर-अंग्रेज (Sher-e-Shor Angez)’ लिखने के लिए सरस्वती सम्मान दिया गया था.

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