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‘बड़े अफसानानिगार थे शम्सुर्रहमान फारूकी, विचारों की ताकत पर करते थे भरोसा’

Shamsur Rahman Farooqui was a Great Storytelle and relied on the power of ideas

शम्सुर्रहमान फारूकी (Shamsur Rahman Faruqi) जितने बड़े अफसानानिगार थे उतने ही बड़े सिद्धांतकार, वे एक बड़े स्कॉलर भी थे. वे विचारों की ताकत पर भरोसा करते थे.

शम्सुर्रहमान फारूकी (Shamsur Rahman Faruqi) जितने बड़े अफसानानिगार थे उतने ही बड़े सिद्धांतकार, वे एक बड़े स्कॉलर भी थे. वे विचारों की ताकत पर भरोसा करते थे. राजकमल प्रकाशन समूह की ओर से शम्सुर्रहमान फारूकी की याद में आयोजित फेसबुक लाइव में शामिल वक्ताओं ने इन शब्दों में उर्दू के दिग्गज कथाकार-आलोचक को याद किया. कवि-कथाकार और समास पत्रिका के संपादक उदयन वाजपेयी ने शम्सुर्रहमान फारूकी (Shamsur Rahman Faruqi) से अपनी मुलाकातों को याद करते हुए कहा, ‘इतना बड़ा लेखक इतनी सहजता से मिला कि मुझे निर्मल वर्मा की याद आ गई. वैसे तो दोनों बिलकुल अलग थे पर उनकी सहजता एक जैसी थी. वे आधुनिक भारतीय लेखक थे, फारूकी साहब भाषा, काव्यशास्त्र पर बात कर सकते थे, वे उर्दू के संस्कृत लेखक थे, भाषा के अर्थ में  भी और सुसंस्कृति के रूप में भी.’

उदयन ने कहा कि दुनिया भर की कविता पर शम्सुर्रहमान फारूकी (Shamsur Rahman Faruqi) साहब की विशेज्ञता थी. उन्होंने साहित्य को समझने की अपनी सैद्धांतिकी विकसित की जिसका गहरा संबंध अरबी-फारसी समेत भारतीय परम्परा से था. इससे पहले, सुपरिचित आलोचक कृष्णमोहन ने फारूकी साहब से अपनी पहली मुलाकात को याद किया. उन्होंने बताया कि फारूकी साहब कहा करते थे कि किसी नई बात को लेकर अगर दो-चार लोग भी खड़े हो जाएं तो पूरा माहौल बदल सकते हैं. विचारों की ताकत पर उनको भरोसा था. कविता के औचित्य और मूल्यों पर उनका भरोसा बड़ा स्वाभाविक था. 

कृष्णमोहन ने कहा, ‘कई बार सहजता से कही गई उनकी बात को भी लोग उनके ज्ञान का अहंकार समझ लेते थे। जबकि वो अपनी कही गई बातों की सहजता को जीते थे. हिंदी में उनके उपन्यास ‘कई चाँद थे सरे आसमां’ का जैसा स्वागत हुआ इससे उन्हें दिली खुशी हुई थी. उनके न रहने के बाद अब ये हमारी जिम्मेदारी है कि हम उनके काम को बारीकी से देखें, पढ़ें और लोगों के सामने ले आएं.’ 

पत्रकार महताब आलम ने कहा कि मैं उनसे कभी मिला नहीं लेकिन एक-दो मौके उन्हें सुनने के मिले, मैंने एक पाठक के रूप में उन्हें जाना. उन्होंने कहा कि वे महज एक कथाकार या आलोचक ही नहीं थे बल्कि एक बड़े स्कॉलर थे, साहित्य के अलावा साइंस और सोशल साइंसेज में भी उनकी दिलचस्पी थी. अनुवाद के क्षेत्र में भी उनका बड़ा योगदान रहा. उन्होंने गैर-उर्दू तबके को उर्दू लेखन से परिचित कराया. गौरतलब है कि ‘कई चाँद थे सरे आसमां (Kai Chaand The Sar-e-Aasman-Hn)’, ‘कब्जे जमां’, ‘उर्दू का आरम्भिक युग’ और ‘अकबर इलाहाबादी पर एक और नज़र’ जैसी चर्चित कृतियों के लेखक शम्सुर्रहमान फारुकी का बीते शुक्रवार निधन हो गया था ।

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