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Mirza Ghalib: मिर्ज़ा ग़ालिब के 10 शेर जो पढ़े तो जुबान से उतरेंगे नहीं

mirza ghalib

मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib) का असली नाम मिर्ज़ा असदउल्लाह बेग ख़ान है. मिर्ज़ा ग़ालिब का जन्म 27 दिसंबर, 1797 को उत्तर प्रदेश के आगरा में हुआ था. 

मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib) का असली नाम मिर्ज़ा असदउल्लाह बेग ख़ान है. मिर्ज़ा ग़ालिब का जन्म 27 दिसंबर, 1797 को उत्तर प्रदेश के आगरा में हुआ था. मिर्ज़ा ग़ालिब ने किस तरह की जिंदगी जी, इसका इशारा उनकी शायरी में मिल जाती है. मिर्ज़ा ग़ालिब की आर्थिक हालत खस्ता रही और खूब कर्ज भी लिया. कर्ज न चुका पाने की वजह से उन्हें कानूनी कार्यवाहियां भी झेलनी पड़ीं. यही नहीं, मिर्ज़ा ग़ालिब को जुआ खेलने की वजह से कैद भी हुई थी. मिर्ज़ा ग़ालिब पर ‘गुलजार’ सीरियल भी बना चुके हैं और इसमे नसीरूरद्दीन शाह ने लीड रोल निभाया था. मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib)  का निधन का 15 फरवरी, 1869 को दिल्ली में हुआ था. पढ़ें मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib Shayari)  की शायरी…

मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का 

उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले 

 

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले 

बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले 

 

इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’ 

कि लगाए न लगे और बुझाए न बने 

 

वो आए घर में हमारे ख़ुदा की क़ुदरत है 

कभी हम उन को कभी अपने घर को देखते हैं 

 

न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता 

डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता 

 

हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन 

दिल के ख़ुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है 

 

इश्क़ ने ‘ग़ालिब’ निकम्मा कर दिया 

वर्ना हम भी आदमी थे काम के 

 

इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा 

लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं 

 

क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हाँ 

रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन 

 

होगा कोई ऐसा भी कि ‘ग़ालिब’ को न जाने 

शाइर तो वो अच्छा है प बदनाम बहुत है 

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