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सफदर हाशमीः अपने नाटकों से उड़ा डाले थे होश,  ‘हल्ला बोल’ नाटक के दौरान हो गई थी हत्या

Safdar Hashmi firebrand Communist playwright Killed During performance of the play Halla Bol

2 जनवरी, 1989 वह मनहूस दिन था जिस दिन फायरब्रांड नाटककार सफदर हाशमी (Safdar Hashmi) की सरेआम हत्या कर दी गई थी.

सफदर हाशमी (Safdar Hashmi) ने अपनी कलम और कला के माध्यम से इस बात को साबित किया किस तरह इनसे सोई सत्ता के होश उड़ाए जा सकते हैं. 2 जनवरी, 1989 वह मनहूस दिन था जिस दिन इस फायरब्रांड नाटककार की सरेआम हत्या कर दी गई. बात 1 जनवरी 1989 की है, वह प्रवासी श्रमिकों के साथ मिलकर ‘हल्ला बोल (Halla Bol)’ नाटक कर रहे थे. सफदर हाशमी (Safdar Hashmi) साहिबाद के झंडापुर में नाटक कर रहे थे और 34 साल के थे. तभी उन पर हमला बोल दिया गया और उसमें वह बुरी तरह घायल हो गए और 2 जनवरी को उनका निधन हो गया. लेकिन उनकी पत्नी ने सफदर हाशमी की मौत के दो दिन बाद ही उस जगह पर उस नाटक को किया. 

सफदर हाशमी (Safdar Hashmi) वामपंथी विचारधारा के नाटककार और डायरेक्टर थे, और वह अपने नुक्कड़ नाटकों की वजह से खास पहचान रखते थे. सफदर हाशमी का जन्म 12 अप्रैल, 1954 को दिल्ली में हुआ. उनकी स्कूली शिक्षा दिल्ली में हुई और उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंट स्टीफंस कॉलेज से इंग्लिश लिटरेचर में बीए किया. लेकिन अपने एमए की शिक्षा के दौरान वह कला-संस्कृति की ओर मुड़ गए. उन्होंने इप्टा (Indian People’s Theatre Association) के साथ कई नाटकों में हिस्सा लिया. सफदर हाशमी जन नाट्य मंच (पीपल्स थिएटर फ्रंट) के संस्थापक थे और इसकी स्थापना 1973 में की गई थी. सफदर हाशमी की दो बहुत ही लोकप्रिय कविताए हैं, ‘पढ़ना लिखना सीखो (Padhna Likhna Sikho)’ और ‘किताबें बात करती हैं (Kitaben Kartin Hain Baaten)’.

आइए पढ़ते हैं सफदर हाशमी (Safdar Hashmi) की दो बेहद जरूरी कविताए…

 

किताबें करती हैं बातें

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बीते जमानों की

दुनिया की, इंसानों की

आज की कल की

एक-एक पल की।

खुशियों की, गमों की

फूलों की, बमों की

जीत की, हार की

प्यार की, मार की।

सुनोगे नहीं क्या

किताबों की बातें?

किताबें, कुछ तो कहना चाहती हैं

तुम्हारे पास रहना चाहती हैं।

किताबों में चिड़िया दीखे चहचहाती,

कि इनमें मिलें खेतियाँ लहलहाती।

किताबों में झरने मिलें गुनगुनाते,

बड़े खूब परियों के किस्से सुनाते।

किताबों में साईंस की आवाज़ है,

किताबों में रॉकेट का राज़ है।

हर इक इल्म की इनमें भरमार है,

किताबों का अपना ही संसार है।

क्या तुम इसमें जाना नहीं चाहोगे?

जो इनमें है, पाना नहीं चाहोगे?

किताबें कुछ तो कहना चाहती हैं,

तुम्हारे पास रहना चाहती हैं!

पढ़ना-लिखना सीखो

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ओ मेहनत करने वालो

पढ़ना-लिखना सीखो ओ भूख से मरने वालो

क ख ग घ को पहचानो

अलिफ़ को पढ़ना सीखो

अ आ इ ई को हथियार

बनाकर लड़ना सीखो

ओ सड़क बनाने वालो, ओ भवन उठाने वालो

खुद अपनी किस्मत का फैसला अगर तुम्हें करना है

ओ बोझा ढोने वालो ओ रेल चलने वालो

अगर देश की बागडोर को कब्ज़े में करना है

क ख ग घ को पहचानो

अलिफ़ को पढ़ना सीखो

अ आ इ ई को हथियार

बनाकर लड़ना सीखो

पूछो, मजदूरी की खातिर लोग भटकते क्यों हैं?

पढ़ो,तुम्हारी सूखी रोटी गिद्ध लपकते क्यों हैं?

पूछो, माँ-बहनों पर यों बदमाश झपटते क्यों हैं?

पढ़ो,तुम्हारी मेहनत का फल सेठ गटकते क्यों हैं?

पढ़ो, लिखा है दीवारों पर मेहनतकश का नारा

पढ़ो, पोस्टर क्या कहता है, वो भी दोस्त तुम्हारा

पढ़ो, अगर अंधे विश्वासों से पाना छुटकारा

पढ़ो, किताबें कहती हैं – सारा संसार तुम्हारा

पढ़ो, कि हर मेहनतकश को उसका हक दिलवाना है

पढ़ो, अगर इस देश को अपने ढंग से चलवाना है

पढ़ना-लिखना सीखो ओ मेहनत करने वालो

पढ़ना-लिखना सीखो ओ भूख से मरने वालो

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