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शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी के नये उपन्यास ‘क़ब्ज़े ज़माँ’ की दस्तक, तीन जमानों की दास्तान

Shamsurrahman Farooqui New Novel Kabze Zaman

शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी (Shamsurrahman Farooqui) की नई किताब ने दस्तक दी है. राजकमल प्रकाशन से उनकी किताब 'क़ब्ज़े ज़माँ (Kabze Zaman)' आ रही है.

शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी (Shamsurrahman Farooqui) का निधन 25 दिसंबर, 2020 को हुआ था और साहित्य समाज में शोक की लहर दौड़ गई थी. लेकिन अब शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी की नई किताब ने दस्तक दे दी है. राजकमल प्रकाशन से उनकी अगली किताब ‘क़ब्ज़े ज़माँ (Kabze Zaman)’ आ रही है. यह किताब 12 जनवरी से बाजार में उपलब्ध होगी. यह शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी का चर्चित उपन्यास है और अब इसका हिंदी अनुवाद प्रकाशित हो गया है. यह उपन्यास एक सिपाही की आपबीती के बहाने वर्तमान समय से शुरू होकर गुजरे दो जमानों का हाल इतने दिलचस्प अन्दाज में बयान करता है कि एक ही कहानी में तीन जमानों की सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक तसवीर साफ उभर आती है. इनमें से एक जमाना सोलहवीं सदी के शुरुआती दिनों का है जब तुगलकों का शासन था. जबकि दूसरा जमाना अठारहवीं सदी के मध्य का है जब मुगलों की सत्ता थी.

शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी (Shamsurrahman Farooqui) के किताब की खासियत इसकी किस्सागोई के साथ ही इसकी भाषा भी है. इस किताब में सारे के सारे पात्र अपने दौर की भाषा का इस्तेमाल करते हैं. इस तरह इस उपन्यास में गुजरे दौर का बखूबी समझने का मौका मिलता है. उपन्यास भारत की जमीन पर विकसित किस्सागोई की ऐतिहासिक परम्परा को भी पूरी शिद्दत से जीवन्त करता है. शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी के ‘क़ब्ज़े ज़माँ (Kabze Zaman)’ का हिन्दी अनुवाद डॉ. रिज़वानुल हक़ ने किया है.

‘क़ब्ज़े ज़माँ (Kabze Zaman)’ को लेकर राजकमल प्रकाशन (Rajkamal Prakashan) के प्रबन्ध निदेशक अशोक महेश्वरी ने कहा, ‘यह उपन्यास उन तमाम लोगों के लिए एक यादगार साबित होगा, जो शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी (Shamsurrahman Farooqui) साहब की किस्सागोई के मुरीद हैं. यह उन पाठकों के लिए भी अविस्मरणीय साबित होगा, जो इसके जरिये पहली बार फ़ारूक़ी साहब की लेखनी के जादू से रू-ब-रू होंगे.’

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