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Javed Akhtar Ki Shayari: धुआँ जो कुछ घरों से उठ रहा है, न पूरे शहर पर छाए तो कहना…पढ़ें जावेद अख्तर की शायरी

Javed Akhtar Ki Shayari

Javed Akhtar Ki Shayari: मशहूर शायर और फिल्म राइटर जावेद अख्तर (Javed Akhtar) का जन्म 17 जनवरी, 1945 को ग्वालियर में हुआ था. जावेद अख्तर पिता जां निसार अख्तर थे और वह भी मशहूर राइटर थे.

Javed Akhtar Ki Shayari: मशहूर शायर और फिल्म राइटर जावेद अख्तर (Javed Akhtar) का जन्म 17 जनवरी, 1945 को ग्वालियर में हुआ था. जावेद अख्तर पिता जां निसार अख्तर थे और वह भी मशहूर राइटर थे, बॉलीवुड सॉन्ग भी लिखा करते थे. इस तरह जावेद अख्तर को शुरू से ही पढ़ने-लिखने वाला माहौल मिला और कलम से प्यार उन्हें कम उम्र से ही हो गया था. जावेद अख्तर 1996 से लेकर 2001 तक पांच बार बेस्ट लिरिक्स के लिए नेशनल पुरस्कार जीत चुके हैं. जावेद अख्तर को 2013 में उनकी उर्दू काव्य संग्रह ‘लावा’ के लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार से नवाजा गया था. उन्होंने 1971 में उन्होंने बतौर स्क्रीनराइटर शुरुआत की थी और उनकी पहली फिल्म ‘अंदाज’ थी. आइए पढ़ते हैं जावेद अख्तर (Javed Akhtar Ki Shayari) की चुनिंदा शायरी…

डर हम को भी लगता है रस्ते के सन्नाटे से 

लेकिन एक सफ़र पर दिल अब जाना तो होगा 


ग़लत बातों को ख़ामोशी से सुनना हामी भर लेना 

बहुत हैं फ़ाएदे इस में मगर अच्छा नहीं लगता 


इस शहर में जीने के अंदाज़ निराले हैं 

होंटों पे लतीफ़े हैं आवाज़ में छाले हैं 


मुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है 

किसी का भी हो सर क़दमों में सर अच्छा नहीं लगता 


धुआँ जो कुछ घरों से उठ रहा है 

पूरे शहर पर छाए तो कहना 


तब हम दोनों वक़्त चुरा कर लाते थे 

अब मिलते हैं जब भी फ़ुर्सत होती है 


कभी जो ख़्वाब था वो पा लिया है 

मगर जो खो गई वो चीज़ क्या थी 


जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता 

मुझे पामाल रस्तों का सफ़र अच्छा नहीं लगता 


ग़ैरों को कब फ़ुर्सत है दुख देने की 

जब होता है कोई हमदम होता है 


कोई शिकवा ग़म कोई याद 

बैठे बैठे बस आँख भर आई 


ख़ून से सींची है मैं ने जो ज़मीं मर मर के 

वो ज़मीं एक सितमगर ने कहा उस की है 


मैं भूल जाऊँ तुम्हें अब यही मुनासिब है 

मगर भुलाना भी चाहूँ तो किस तरह भूलूँ 

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